शनिवार, 4 जून 2022

लाभदायक पंद्रहिया यंत्र

 लाभदायक पंद्रहिया यंत्र 

यंत्र-लेखन के लिए पहले लेखन -सामग्री इकट्ठी करें। लापसी , अनार की लेखनी (कलम), अष्टगंध [सफेद चंदन , रक्त (लाल) चंदन , केसर , कस्तूरी , सिंदूर , गोरोचन , अगर और तगर , आठ वस्तुओं का मिश्रण ] स्याही , चावल , गुग्गल , पुष्प , खोपरे के टुकड़े , नागरबेल के 21 पान , 21 सुपारी , घृत का दीपक और एक कोरा कोरा घड़ा , यंत्र - लेखन और उसके सिद्ध करने की विधि निम्न है -

विधि : किसी पवित्र , शुद्ध व एकांत स्थान में पहले पूर्व दिशा की ओर घड़े की स्थापना करें। उसके सामने भोजपत्र बिछाना चाहिए। उसके ऊपर के भाग में घृत का दीपक हो और नीचे के भाग में धूप का धूपिया हो , जिसमें गुग्गल का धूप करना चाहिए। तत्पश्चात अनार की कलम से भोजपत्र पर अष्टगंध से यंत्र लिखना चाहिए। यंत्र लिखते समय 'ह्रीं ' या 'ॐ ह्रीं श्रीं ' मंत्र का जप करते रहना चाहिए। 

यंत्र लिखने के बाद उसका पूजन करें , चावल , पुष्प , खोपरे का टुकड़ा , पान -सुपारी अनुक्रम से छुआने चाहिए। साथ में धूप भी करते रहना चाहिए। इस प्रकार 21 दिन तक नित्य पूजन करें और नित्य मंत्र का 6 हजार जप करें। 21 दिन में सवा लाख मंत्र का जप पूर्ण हो जाएगा , तथा यंत्र सिद्ध हो जाएगा। अंत में हवन , तर्पण आदि विधिपूर्वक करें , तत्पश्चात यंत्र को चांदी या सोने के कवच में डालकर पुरुष को अपने दाहिने हाथ में और स्त्री को बाएं हाथ में या गले में धारण करना चाहिए। इस यंत्र के धारण करने से सर्व प्रकार के विष का नाश होता है। देवता प्रसन्न होते हैं। बंध्या के गर्भ रहता है। निःसंतान के संतान होती है। पुत्ररत्न होता है। एकांतर ज्वर मिटता है , साधक निरोग रहता है। 

विशेष - यंत्र की रचना शुक्ल पक्ष में उत्तर दिशा की ओर मुंह करके करनी चाहिए। मंत्र -जप काल में सफेद माला प्रयुक्त होती है। श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिए तथा आसन भी श्वेत होना चाहिए। साधना के दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन , सात्त्विक भोजन और शुद्ध विचार रखे जाने चाहिए। 

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