चन्द्रयंत्रम्
चन्द्र यन्त्र शुद्ध चांदी में बनाना चाहिए। इसके लिए सर्व शुद्ध मुहूर्त सोमपुष्य है अथवा कोई भी पुष्य नक्षत्र को चन्द्र यन्त्र बना सकते हैं। इस यन्त्र के लिए चन्द्र यन्त्र के ऊपर सवा दो रत्ती का मोती प्राण प्रतिष्ठित करके लगाना चाहिए।
इस यन्त्र को सिद्ध करने के लिए चन्द्र मन्त्र के 11 हजार जप करने चाहिए। उसके दशांश का हवन , मार्जन , तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। चन्द्र यन्त्र सिद्ध करने के लिए तान्त्रिक एवं वैदिक मन्त्र इस प्रकार है।
ॐ इमन्देवा असपत्क्न ्ठ सुवद्ध्वम्महते क्षत्राय महतेज्ज्यैष्ठयायमहते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय।
इमममुष्यपुत्रममुष्यै पुत्रमस्र्यैविश एषवोमीराजा सोमोस्म्माकम्ब्राह्मणाना ्ठ राजा।।
तान्त्रिक मन्त्र
ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्राय नमः।
तन्त्र प्रयोग
अमूल्य रत्न के अभाव में शास्त्रों में वनौषधियों , वनस्पतियों के वर्णन भी मिलते हैं।
विगुणेक्षीरिका (खीरणी) के वृक्ष की जड़ रविवार को 12 से 3 बजे के मध्य दिन में लाकर माला के मणियों की तरह बनाकर , सफेद डोरों में डालकर कंठ में बांध कर ,'वं डं लं ' मंत्र से 21 बार अभिमंत्रित करने से चन्द्रकृत अरिष्ट शान्त हो जाते हैं। यदि प्रति दिन पंचगव्य दिया जाए तो कैन्सर सम्बन्धित रोगों में भी फायदा होता है। वजन 11 रत्ती होना चाहिए। यह जड़ी मां - पुत्र के मनमुटाव को दूर करती है।
विशेष
चन्द्र यन्त्र कर्क राशि एवं कर्क लग्न वालों को धारण करना चाहिए। जिनकी कुण्डली में बालरिष्ट योग हो , उन बच्चों के गले में 8 या 16 वर्ष तक यह यन्त्र पहनना चाहिए। इस यन्त्र से मानसिक चिन्ता दूर होती है।
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