रवियंत्रम्
सूर्य यन्त्र ताम्बे या सोना (स्वर्ण ) धातु में बनता है। इस यन्त्र को बनाने के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त रवि योग या रविपुष्यामृत योग होता है। इस यन्त्र के नीचे सवा पांच रत्ती का माणक रत्न प्राण प्रतिष्ठित करके लगाना चाहिए।
इस यन्त्र को सिद्ध करने के लिए सूर्य मन्त्र के सात हजार जप करने चाहिए। जप के दशांश का हवन , मार्जन , तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस यन्त्र को सिद्ध करने के लिए तान्त्रिक व वैदिक मन्त्र इस प्रकार है।
ॐ आकृष्णेनरजसावर्तमानोनिवेशयन्न्मृतमम्मर्त्यच।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।।
तान्त्रिक मन्त्र
ॐ ह्राँ ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।
तन्त्र प्रयोग
अमूल्य रत्न के अभाव में शास्त्रों में वनौषधियों , वनस्पतियों के वर्णन भी मिलते हैं।
मूलधार्य त्रिशूल्याः (विल्व वृक्ष ) सोमवार को इस वृक्ष की जड़ प्रातः 8 बजे लाल डोरा डालकर 'ह्रीं हंस ' इस मंत्र से 11 बार अभिमंत्रित करके दाएं हाथ में धारण करें , तो सूर्यकृत बाधा शान्त होती है। स्थानान्तरण के लिए बाएं हाथ में बांध लें तो सुनिश्चित स्थानान्तरण होता है। पति -पत्नी के मनमुटाव को भी यह जड़ी दूर करती है।
विशेष
स्वर्ण धातु की जगह यह यन्त्र चांदी में भी बनाया जा सकता है तथा बहुमूल्य माणक की जगह सिलोनी माणक , रातड़ी या लालड़ी नामक उपरत्न का भी प्रयोग किया जा सकता है। मेष राशि वाले एवं सिंह लग्न वालों के लिए यह सूर्य यन्त्र विशेष रूप से उन्नतिदायक एवं सफलतादायक रहता है।
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