शनि - यंत्रम्
शनि यन्त्र त्रिलोह या लोहे में बनाना चाहिए। इसके लिए सबसे उत्तम मुहूर्त शनिरोहिणी अमृत सिद्ध योग एवं शनिपुष्य है। यन्त्र की सभी कोष्ठात्मक संख्याओं का कुल योग 33 आता है। धनुषाकारीय इस यन्त्र के नीचे सवा पांच रत्ती का नीलम लगाना चाहिए।
इस यन्त्र को सिद्ध करने के लिए शनि मन्त्र के 23 हजार जप करने चाहिए। जप के दशांश का हवन , मार्जन , तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस यन्त्र को सिद्ध करने के लिए तान्त्रिक व वैदिक मन्त्र इस प्रकार है।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपोभवन्तुपीतये।।
शंय्योरभिश्रवन्तुनः।।
तान्त्रिक मन्त्र
ॐ खाँ खीं खौं सः शनैश्चाराय नमः।
विशेष
मकर व कुम्भ राशि एवं लग्न वालों को शनि यन्त्र अवश्य धारण करना चाहिए। नीलम महंगा रत्न है। इसके अभाव में स्टार निली , जामुनिया , कटेला , धुनेला , ब्लैक स्टार , लाजावल , गनमेटल इत्यादि धारण किए जा सकते है। रत्न के अभाव में घुड़नाल व शनिमुद्रिका भी धारण की जा सकती है। इस यन्त्र के धारण करने से व्यक्ति को अचानक सट्टा या शेयर में लाभ हो सकता है एवं शनि सम्बन्धी सभी दोष दूर हो जाते हैं।
तन्त्र प्रयोग
विच्छोलम् (अम्लवेत ) वृक्ष की जड़ जिसका वजन 18 रत्ती हो , शनिवार को दोपहर में लाकर 'वं डं क्षं पं हं ' बीजमंत्र से 51 बार अभिमंत्रित कर माला मणियों की तरह बनाकर काले धागे में बांधकर पैर पर बांधें या कंठ में धारण करें। इसमें बिच्छू जड़ी की जड़ (जिसके कांटे हों , कांटा लगने से जैसे बिच्छू काटता है ) भी उतना ही काम करेगी। यदि शनि ग्रह का पुराणोक्त मन्त्र प्रतिदिन 1000 जप किया जाए तो शनिकृत अरिष्ट दूर होने के साथ यह प्रयोग एक्सीडेंट एवं लकवा की बीमारी से भी मुक्त कर देता है।
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