केतु - यंत्रम्
केतु यन्त्र लोहा या त्रिलोह या मिश्रित धातु में बनाया जा सकता है। इसे किसी भी पुष्य नक्षत्र के दिन ध्वजाकार आकृति में बनाना चाहिए। इस यन्त्र के सभी कोष्ठकों की संख्याओं का योग 39 होता है। इस यन्त्र के नीचे सवा पांच रत्ती का गोमेद (वैदूर्य) लगाना चाहिए।
इस यन्त्र को सिद्ध करने के लिए केतु के मन्त्रों के 17 हजार जप करने चाहिए। जबकि दशांश का हवन , मार्जन , तर्पण एवं ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। इस यन्त्र को सिद्ध करने के लिए वैदिक व तान्त्रिक मन्त्र इस प्रकार है।
ॐ केतुंकृण्वनंकेतवे पेशोमर्या अपेशसे।
समुषद्दिभरजायथाः।।
तान्त्रिक मन्त्र
ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः केतवे नमः।
विशेष
गोमेद के अभाव में इसका उपरत्न तुसा या साफी से काम लिया जा सकता है। यह यन्त्र केतुजन्य सभी उपद्रव व दोषों को शान्त करता है। जिन लोगों की जन्म कुण्डली में केतु की महादशा या अन्तरदशा चल रही हो , उन्हें यह यन्त्र विशेष रूप से धारण करना चाहिए।
तन्त्र प्रयोग
अश्वगस्धाम् (असगन्ध ) पेड़ की जड़ बुधवार को प्रातः 8 से 11 के मध्य 13 रत्ती की लाकर , 'क्रीं क्रां औं ' मंत्र से 21 बार अभिमंत्रित करके, काले डोरे में माला मणियों की तरह डालकर , बाईं भुजा पर बांधने से अरिष्ट दूर होते हैं। यदि वेदोक्तं केतु मंत्र 21 बार प्रतिदिन जप करके कमर में धारण करें तो वायु सम्बन्धी , गण्ठ सम्बन्धी , मूत्र सम्बन्धी बीमारी व पथरी -सम्बन्धी बीमारी भी ठीक होती हैं।
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