संतानदाता यंत्र
दीवाली की आधी रात में इस यंत्र की रचना की जाती है। सबसे पहले केसर , कपूर , खैरदसा, सिंदूर और हिंगुल , इन पांच चीजों को मिलाकर स्याही बनाएं। फिर भोजपत्र पर चमेली या अनार की लेखनी का प्रयोग करते हुए यंत्र लिखें। फिर उसे धूप -दीप देकर और वस्त्र अथवा ताम्रपत्र के कवच में बंद करके स्त्री के बाजू या गले में धारण करा दें।
श्रद्धा , सदाचार , दान -पुण्य और पूजा -अर्चना भी यथा सामर्ध्य करते रहना चाहिए। इस यंत्र के प्रभाव से स्त्री को संतान -सुख प्राप्त होता है। बंध्यत्व , गर्भस्राव और गर्भपात जैसी दुर्घटनाएं कभी नहीं होंगी तथा नियत -समय पर संतान अवश्य होगी।
विशेष - यदि कोई स्त्री यंत्र को धारण करने की स्थिति में न हो अथवा वो उसे धारण न करना चाहे , फिर भी संतान की चाहना रखती हो , तो यंत्र उसका पति धारण कर सकता है। इस स्थिति में पति को ही पूजा -अर्चना करके , दान -पुण्य करना होगा तथा पत्नी के गर्भ रह जाने पर ब्रह्मचर्य का पालन उस समय तक करना होगा , जब तक कि सफलतापूर्वक प्रसव न हो जाए।
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